Monday, November 24, 2008
क्रमशः
लडाई-झगडे, चीख-पुकार, मस्ती-धमाल, गाना-बजाना सब होता रहता था। उन सब में मैं ही सब से ज़्यादा सीधा और उधमी था ।
मुझे गाना-बजाना, मरना-पीटना, मस्ती करना सब अच्छा लगता था।
एक बार हमारे घर के पास एक गधी और उसका बच्चा घास चर रहे थे मैं गधी के बच्चे को पकड़ लिया और उसको अपनी छोटी बहन को उसके कान थमा दिए और ताकीद किया की उसको छोड़ना नही उसने भी हामी भर ली बच्चे को पकड़ा देख गधी भी हमारे बस में आ गई । मैंने लपक कर गधी को पकड़ा और उसके ऊपर सवार हो गया और खूब घूमता रहा अचानक मैंने देखा की गधी का बच्चा कुलाचें भरता हुआ गधी के पास आगया फिर क्या था गधी भी हमारी पकड़ से आजाद हो गई और मुझे लेकर कुलाचे भरती हुई हवा से बाते करने लगी
Thursday, February 21, 2008
मेरा जीवन
मै शुरू से ही सीधा-साधा था जब मैं छोटा था तो घर में ही खेलता था बाहर बहुत ही कम जाया करता था. मेरा कोई भी दोस्त नहीं था मैं अपनी मां के साथ ही उनका हाथ बटाता रहता था,
मुझे याद नहीं कि शायद ही उन मेरी मां ने मुझे कभी भी मारा हो, ऐसे ही वक्त बीतता गया मैं बडा होने लगा घर की स्थिति ठीक नहीं रहती थी लेकिन पापा ने कभी किसी चीज़ के लिये हम लोगों को तरसाया नहीं हमने जो कुछ भी मांगा वो चीज़ पापा ने मुहैया कराई.
मुझे याद है कि जब मैं स्कूल भी नहीं जाता था तब एक दिन अपने पापा की गोद में बाज़ार गया वहां पर मुझे किताब की दुकान पर एक स्टील का फ़ुटा दिखा मैने पापा से उसको लेने के लिये कहा लेकिन पापा ने शायद यह समझकर कि अभी तो छोटा है यह क्या करेगा, चोट-वोट लग जायेगी, मुझे वो फ़ुटा नहीं दिलाया और घर की तरफ़ मुझे लेकर चलने लगे मैं गुस्से में आ गया और पापा से बोलना बन्द कर दिया पापा को पता चला कि मैं गुस्से में हूं, तो उन्होने मुझे प्यार किया और लगभग घर से ही वापस बाज़ार ले गये और वो फ़ुटा मुझे दिलाया जो मेरे खिलौनों से काफ़ी मंहगा था.
शायद उस के बाद मैने छोटी मोटी ज़िद को छोड. कर कभी ज़िद नहीं की. मैं ये समझ कर कोई फ़रमाइश नहीं करता था कि शायद पैसों की कमी तो नहीं है, क्यों कि घर मै ज़्यादा मेम्बर थे जो कुल सात मेम्बर थे, मां-बाप के अलावा तीन बहिने और हम दो भाई...................................क्रमशः
Thursday, February 7, 2008
मोहब्बत
मेरी अम्मी दुनिया की सारी अम्मी की तुलना में कहीं अधिक अच्छी हैं मैं नहीं समझता कि कोई भी मां मेरी मां की बराबरी तो दूर उनकी परछाई के आसपास भी नहीं फ़टकती है.
बचपन से अब तक शायद ही मेरी मां ने मुझे मारने के लिये कभी हाथ उठाया हो, मुझे हर मां में उनका ही चेहरा नज़र आता है,
मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि वो भी मुझे उतना ही चाहतीं हैं जितना कि कुम्हार अपने बनाये हुए बर्तन को चाहता है, मां अपने बच्चे को चाहती है, खुदा अपने बन्दों को चाहता है.
लेकिन न जाने किस बागीचे की, किस माली की, किस सूरज की, किस धूप की, किस कुम्हार की, और न जाने किस खुदा की नज़र हमारे प्यार को हमारे हंसते परिवार को और मेरे घर को लगी है कि मैं अभी तक समझने की कोशिश कर रहा हूं.
Monday, January 14, 2008
ये कैसी मोहब्बत
ज़्यादतर सास ही बहू को तथाकथित "मोहब्ब्त" करतीं हैं और सास यह कहतीं है कि बहू मुझसे प्यार नहीं करती.
ये हाल एक और रिश्ते क है वो रिश्ता है नन्द और भाभी का.
मैं जो किस्सा आप लोगों को सुनाने जा रहा हूं वो कुछ इस तरह का ही है, जिस किस्से में एक भरा-पुरा घर है मां हैं, पिता हैं, दो भाई हैं और तीन बहनें हैं, सभी ने ज़िन्दगी हंस खेल कर काटी है. लड. झगड कर काटी है.