Thursday, February 21, 2008

मेरा जीवन

मै शुरू से ही सीधा-साधा था जब मैं छोटा था तो घर में ही खेलता था बाहर बहुत ही कम जाया करता था. मेरा कोई भी दोस्त नहीं था मैं अपनी मां के साथ ही उनका हाथ बटाता रहता था,

मुझे याद नहीं कि शायद ही उन मेरी मां ने मुझे कभी भी मारा हो, ऐसे ही वक्त बीतता गया मैं बडा होने लगा घर की स्थिति ठीक नहीं रहती थी लेकिन पापा ने कभी किसी चीज़ के लिये हम लोगों को तरसाया नहीं हमने जो कुछ भी मांगा वो चीज़ पापा ने मुहैया कराई.

मुझे याद है कि जब मैं स्कूल भी नहीं जाता था तब एक दिन अपने पापा की गोद में बाज़ार गया वहां पर मुझे किताब की दुकान पर एक स्टील का फ़ुटा दिखा मैने पापा से उसको लेने के लिये कहा लेकिन पापा ने शायद यह समझकर कि अभी तो छोटा है यह क्या करेगा, चोट-वोट लग जायेगी, मुझे वो फ़ुटा नहीं दिलाया और घर की तरफ़ मुझे लेकर चलने लगे मैं गुस्से में आ गया और पापा से बोलना बन्द कर दिया पापा को पता चला कि मैं गुस्से में हूं, तो उन्होने मुझे प्यार किया और लगभग घर से ही वापस बाज़ार ले गये और वो फ़ुटा मुझे दिलाया जो मेरे खिलौनों से काफ़ी मंहगा था.

शायद उस के बाद मैने छोटी मोटी ज़िद को छोड. कर कभी ज़िद नहीं की. मैं ये समझ कर कोई फ़रमाइश नहीं करता था कि शायद पैसों की कमी तो नहीं है, क्यों कि घर मै ज़्यादा मेम्बर थे जो कुल सात मेम्बर थे, मां-बाप के अलावा तीन बहिने और हम दो भाई...................................क्रमशः

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