Monday, November 24, 2008

क्रमशः

हम दोनों भाइयों में बहुत प्यार है (था)। मेरे कपड़े वो पहनता था उसके कपड़े मैं पहना करता था। जब तक एक साथ खाना नही खलेते थे चैन नही आता था हम लोग खूब मस्ती करते थे हालाँकि मैं उससे करीब पॉँचसाल बड़ा था लेकिन मैं ने उसको यह एहसास नही दिलाया की मैं बड़ा हूँ । जब कभी हमारी अम्मी उसको डांटदेती थी तो में उसको मन लेता था मुझसे चुटकी में ही मन जाता था । हम पांचों भाई-बहनों में खूब प्यार था लेकिन एक बहन बचपन से ही सब को कुछ ठीक नही लगती थी क्योंकि वह पापा की लाडली थी कोई भी घर का कम नही करती थी खाना चारपाई पर ही खालेती थी यहाँ तक की नहाती-धोती भी नही थी और तो और बिना ब्रश किए नाश्ता कर लेती थी यह साड़ी बाते हम सब को बुरी लगती थी । और जब पापा से शिकायत करते थे तो पापा उसका ही पक्ष लेते थे ।
लडाई-झगडे, चीख-पुकार, मस्ती-धमाल, गाना-बजाना सब होता रहता था। उन सब में मैं ही सब से ज़्यादा सीधा और उधमी था ।
मुझे गाना-बजाना, मरना-पीटना, मस्ती करना सब अच्छा लगता था।
एक बार हमारे घर के पास एक गधी और उसका बच्चा घास चर रहे थे मैं गधी के बच्चे को पकड़ लिया और उसको अपनी छोटी बहन को उसके कान थमा दिए और ताकीद किया की उसको छोड़ना नही उसने भी हामी भर ली बच्चे को पकड़ा देख गधी भी हमारे बस में आ गई । मैंने लपक कर गधी को पकड़ा और उसके ऊपर सवार हो गया और खूब घूमता रहा अचानक मैंने देखा की गधी का बच्चा कुलाचें भरता हुआ गधी के पास आगया फिर क्या था गधी भी हमारी पकड़ से आजाद हो गई और मुझे लेकर कुलाचे भरती हुई हवा से बाते करने लगी

1 comment:

Shiv said...

sir, usne aapko kahan giraya...