मैं अपनी अम्मी से उतना ही प्यार करता हूं, जितना कि बागीचा फूल को करता है, माली बागीचे को करता है, सूरज धूप को करता है, धूप किरनों को करती है.
मेरी अम्मी दुनिया की सारी अम्मी की तुलना में कहीं अधिक अच्छी हैं मैं नहीं समझता कि कोई भी मां मेरी मां की बराबरी तो दूर उनकी परछाई के आसपास भी नहीं फ़टकती है.
बचपन से अब तक शायद ही मेरी मां ने मुझे मारने के लिये कभी हाथ उठाया हो, मुझे हर मां में उनका ही चेहरा नज़र आता है,
मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि वो भी मुझे उतना ही चाहतीं हैं जितना कि कुम्हार अपने बनाये हुए बर्तन को चाहता है, मां अपने बच्चे को चाहती है, खुदा अपने बन्दों को चाहता है.
लेकिन न जाने किस बागीचे की, किस माली की, किस सूरज की, किस धूप की, किस कुम्हार की, और न जाने किस खुदा की नज़र हमारे प्यार को हमारे हंसते परिवार को और मेरे घर को लगी है कि मैं अभी तक समझने की कोशिश कर रहा हूं.
Thursday, February 7, 2008
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